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Hindu Marriage Act, 1955 (25 of 1955) Section 13(1)(ia) – Maintenance – Undoubtedly

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the h usband is earning well while being posted in Singapore, however, the cost of living in Singapore is higher – The husband is already paying a rent @ 3200 Singapore Dollars, per month and income tax @ 1583 Singapore Dollars – Thus, the net income of the respondent gets substantially reduced – Keeping in view the status of the parties and their income, it is considered appropriate to direct the respondent to pay a sum of Rs.50,000/-, per month, to the wife towards interim  maintenanc e allowance from the date  of the h usband is earning well while being posted in Singapore, however, the cost of living in Singapore is higher – The husband is already paying a rent @ 3200 Singapore Dollars, per month and income tax @ 1583 Singapore Dollars – Thus, the net income of the respondent gets substantially reduced – Keeping in view the status of the parties and their income, it is considered appropriate to direct the respondent to pay a sum of Rs.50,000/-, per month, to the wife ...

सीआरपीसी की धारा 41ए का पालन किए बिना आरोपी को गिरफ्तार करने पर सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की खिंचाई की

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याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता सुनील फर्नांडीस ने प्रस्तुत किया कि जांच अधिकारी ने सीआरपीसी, 1973 की धारा 41 (ए) के तहत कोई नोटिस नहीं दिया। उन्होंने आगे प्रस्तुत किया कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता ने गिरफ्तारी से पहले सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जांच अधिकारी (आईओ) ने याचिकाकर्ता से संपर्क किया और उसे 8 मार्च, 2022 को हिरासत में ले लिया। वकील के तर्क को ध्यान में रखते हुए और याचिकाकर्ता पहले से ही हिरासत में होने पर विचार करते हुए पीठ ने याचिकाकर्ता को नियमित जमानत आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता दी। पीठ ने अपने आदेश में कहा, "यदि ऐसा कोई आवेदन दायर किया जाता है तो ट्रायल कोर्ट से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सीआरपीसी की धारा 41 (ए) के गैर-अनुपालन पर ध्यान दे और याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर गिरफ्तारी के बाद की जमानत के लिए आवेदन का जितनी जल्दी हो सके एक उचित समय में निपटारा करे।"

क्या पति पर धारा 377 आईपीसी के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है, जब धारा 375 आईपीसी वैवाहिक यौन संबंध से छूट देती है? दिल्ली हाईकोर्ट विचार करेगा

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दिल्ली हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में यह घोषणा करने की मांग की गई है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत एक पति पर पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध के अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है, जब धारा 375 का अपवाद 2 वैवाहिक यौन संबंध को बलात्कार के अपराध से छूट देता है। हाईकोर्ट ने उक्त याचिका को याचिकाओं के एक बैच से अलग कर दिया है, जिनमें वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की मांग की गई थी। जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की खंडपीठ ने कई दिनों तक चली लंबी सुनवाई के बाद संहिता की धारा 375 के अपवाद के खिलाफ दायर याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। याचिका को याचिकाओं के उक्त बैच से अलग करते हुए कोर्ट ने कहा कि वह 11 मार्च को इसे सूचीबद्ध करते हुए मामले की अलग से सुनवाई करेगा। "चूंकि उपर्युक्त याचिका में उठाया गया मुद्दा रिट याचिकाओं के समूह यानी WP (C) Nos. 284/2015, 5858/2017, 6024/2017 और WP (Crl.) No.964/2017 से गुणात्मक रूप से अलग है। उस याचिका को इस बैच से अलग करने का आदेश दिया जाता है। इस रिट याचिका पर अलग से सुनवाई की जाएगी।" एडवोकेट अमित कुमार की ओर से...

शराब की एमआरपी पर छूट पर रोक लगाने वाले दिल्ली सरकार के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती

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दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में एक याचिका दायर कर दिल्ली सरकार द्वारा शहर में शराब के एमआरपी पर खुदरा लाइसेंसधारियों द्वारा छूट या रियायतें देने पर रोक लगाने के आदेश को चुनौती दी गई है। एडवोकेट संजय एबॉट, एडवोकेट तन्मया मेहता और एडवोकेट हनी उप्पल के माध्यम से दायर याचिका दिल्ली सरकार के उत्पाद, मनोरंजन और विलासिता कर विभाग द्वारा पारित 28 फरवरी, 2022 के आदेश को चुनौती देती है। वैध L7Z लाइसेंस रखने वाले पांच निजी खिलाड़ियों द्वारा याचिका दायर की गई है। याचिका पिछले साल जून में दिल्ली सरकार द्वारा वर्ष 2021-2022 के लिए अनुमोदित नई दिल्ली आबकारी नीति की पृष्ठभूमि में दायर की गई है। यह नीति शराब व्यवसाय से संबंधित विभिन्न पहलुओं के लिए रूपरेखा निर्धारित करती है। आबकारी नीति को मंजूरी मिलने के बाद दिल्ली सरकार ने भारतीय और विदेशी शराब के खुदरा विक्रेताओं के लिए जोनल लाइसेंस के लिए निविदाएं जारी की थीं। याचिकाकर्ताओं ने निविदाओं में भाग लिया और शहर के विभिन्न क्षेत्रों के लिए सफल बोलीदाताओं के रूप में उभरे। याचिका में कहा गया है कि छूट की अनुमति दी गई थी और लाइसेंसधारक छूट दे रहे थे। ...

2012 से हाईकोर्ट में आपराधिक अपील लंबित, दोषी को 17 साल की सजा, सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐसे आरोपी को जमानत दे दी, जो हाईकोर्ट के समक्ष आपराधिक अपील के लंबित रहने के दौरान (17 साल से अधिक) सजा काट चुका है। चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और ज‌स्टिस हिमा कोहली की बेंच ने रितु पाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में जमानत देते हुए अपने आदेश में कहा, "इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता पहले ही 14 साल और 3 महीने की वास्तविक हिरासत और छूट के साथ कुल 17 साल और 3 महीने की सजा काट चुका है, और विशेष रूप से इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि सह-आरोपियों को पहले ही जमानत पर रिहा किया जा चुका है, याचिकाकर्ता का आवेदन 2012 से हाईकोर्ट के समक्ष विचाराधीन है, हम उसे जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला मानते हैं।" बेंच ने ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए नियमों और शर्तों पर याचिकाकर्ता को जमानत देने का निर्देश दिया। याचिका में यह तर्क दिया गया था कि याचिकाकर्ता को 2004 में हुई एक घटना के लिए 14 जनवरी, 2008 को आईपीसी की धारा 302 सहपठित धारा 34 के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया था, लेकिन सजा के निलंबन की मांग करने वाला उसका आवेदन 9 साल इलाह...

Order 7, Rule 11 CPC

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_*• Order 7, Rule 11 CPC  Suit for mandatory, permanent injunction and for recovery Rejection of plaint Plaintiff, second wife of deceased, seeking injunction to Restrain defendant from interfering with running of Franchisee business in suit property Plea that suit prayers are contrary to the compromise decree passed inter se the suit Plaintiff made no efforts to get in touch with defendant for franchisee business No document to show bona fide of plaintiff that she wanted to seek consultation/consent of defendant for entering into new franchisee business There is no likelihood of suit succeeding  Application allowed thereby dismissing suit. [Paras 13 and 14]*_ _*Sunita vs Kapil CSCOMM 818/17 29/01/20 [ MUKTA GUPTA JJ ]*_ _*[ DELHI HIGH COURT ]*_ Advocate & solicitor 8851250058 

Constitution of India, Article 226

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_*• Constitution of India, Article 226  Candidate could not be penalized for answers at variance with key only if answer key was proven to be incorrect beyond doubt Answer key cannot be disregarded as being incorrect merely on doubt - There is always presumption of correctness regarding answer key and it may be subject to judicial review only when it is demonstrably wrong Examination cum Judicial Education and Training Programme Committee has considered queries raised by petitioner at length and given detailed reasons as to why impugned answer key is single, objective, correct answer of four options provided in Committee rightly concluded that impugned questions have been correctly framed and answer keys provided exam thereto are also correct Petition dismissed. [Paras 16, 17 and 18]*_ _*Shivnath vs Registrar General High Court of Delhi WPC 7346/20 27/11/20 [ MANMOHAN JJ ]*_ _*[ DELHI HIGH COURT ]*_ Advocate and solicitor 8851250058