Posts

Constitution of India, Article 226

Image
_*• Constitution of India, Article 226  Candidate could not be penalized for answers at variance with key only if answer key was proven to be incorrect beyond doubt Answer key cannot be disregarded as being incorrect merely on doubt - There is always presumption of correctness regarding answer key and it may be subject to judicial review only when it is demonstrably wrong Examination cum Judicial Education and Training Programme Committee has considered queries raised by petitioner at length and given detailed reasons as to why impugned answer key is single, objective, correct answer of four options provided in Committee rightly concluded that impugned questions have been correctly framed and answer keys provided exam thereto are also correct Petition dismissed. [Paras 16, 17 and 18]*_ _*Shivnath vs Registrar General High Court of Delhi WPC 7346/20 27/11/20 [ MANMOHAN JJ ]*_ _*[ DELHI HIGH COURT ]*_ Advocate and solicitor 8851250058 

NI ACT Sections 138 and 139 Section 397 and 401 CRPC

Image
_- NI ACT Sections 138 and 139 Section 397 and 401 CRPC Loan transaction Execution of cheque being proved on the record, court held bound to raise the presumption u/s 139 Accused failed to rebut this presumption in any manner Plea of the accused was that he had some transactions with the son of the complainant and that he had entrusted signed blank cheques with the son of the complainant and that the complainant misused one of such cheques and filed the case, not supported by any materials on the record Resultantly, conviction affirmed in revision Considering the facts and circumstances of the case, there held no necessity to impose any substantive sentence of imprisonment on the petitioner/accused. [Paras 9 to 15]*_ _*BENNET SAMRAJ Versus SAGAR SAM CRL-RP 103/20 [ NARAYANA JJ ]*_ _*[ KERALA HIGH COURT ]*_ *____________ Advocate & solicitor 8851250058 Best advocate in rohini court for divorce case | best lawyer for divorce case in rohini court | rohini court advocate co...

तुरंत बदला जाए जीएसटी का ये नया नियम, देश के कारोबारियों ने वित्तमंत्री के सामने रखी मांग

  तुरंत बदला जाए जीएसटी का ये नया नियम, देश के कारोबारियों ने वित्तमंत्री के सामने रखी मांग  जीएसटी ( GST ) विभाग के पास फ़र्ज़ी बिलों ( Fake Invoice ) के द्वारा जीएसटी लेकर राजस्व को चूना लगाने वाले लोगों के ख़िलाफ़ शिकायत हैं तो ऐसे लोगों को क़ानून के मुताबिक़ बहुत सख़्ती से निबटना चाहिए, TV9 Hindi   Publish Date - 2:55 pm, Fri, 25 December 20 केंद्र सरकार की ओर से 22 दिसंबर को जीएसटी नियमों में धारा 86-बी को जोड़ कर प्रत्येक व्यापारी जिसका मासिक टर्नओवर 50 लाख रुपए से ज़्यादा है.  को अनिवार्य रूप से 1 प्रतिशत जीएसटी जमा कराना पड़ेगा, के प्रावधान पर कड़ा एतराज जताते हुए कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्ज़ (कैट) ने आज केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण को एक पत्र भेजकर मांग की है की इस नियम को तुरंत स्थगित किया जाए और व्यापारियों से सलाह कर ही इसे लागू किया जाए.  कैट ने यह भी मांग की है क़ी जीएसटी एवं आयकर में ऑडिट की रिटर्न भरने की अंतिम तारीख़ 31 दिसम्बर 2020 को भी तीन महीने के लिए आगे बढ़ाया जाए .  वित्तमंत्री  निर्मला सीतारमण को भेजे पत...

section 307 IPC

Image
_*⭐SC:Intention matters in a case of attempt to murder - Indian Penal Code, 1860 - Section 307.*_ _Proof of grievous or life-threatening hurt not a sine qua non for the offence u/s 307 Intention of the accused is important which can be ascertained from the actual injury and surrounding circumstances including nature of weapon used and severity of blows inflicted - Instantly eleven punctured wounds caused by a firearm - Circumstances of the case indicating an intention to murder - section 307 held applicable ._ _Case:_  _*The State of Madhya Pradesh Vs. Kanha @ Omprakash.*_ _Citation:_ _*2019 (6) SC 468: Cri 1589 (2018): SLP 1433 (2013).*_ *************************** Advocate & solicitor 8851250058  Best advocate in rohini court for divorce case | best lawyer for divorce case in rohini court | rohini court advocate contact number | best property lawyer in rohini court | property lawyer in rohini court | best cheque bounce lawyer in rohini court | best advocate f...

पत्नी के नग्न अवस्था के फोटो व्हाट्सएप पर शेयर करना पति को पड़ा भारी कोर्ट ने FIR रदद् करने से मना किया।

Image
एफआईआर को महज इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि व्हाट्सएप पर महिला की नग्न तस्वीरें पोस्ट करने वाला आरोपी उसका पति हैः इलाहाबाद हाईकोर्ट advocate & solicitor  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी(एफआईआर) को रद्द करने से इनकार कर दिया, जिस पर व्हाट्सएप पर अपनी पत्नी (शिकायतकर्ता) की नग्न तस्वीरें पोस्ट करने का आरोप है। न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने आरोपी की तरफ से दायर आपराधिक विविध रिट याचिका को खारिज करते हुए कहा कि, ''आईटी अधिनियम की धारा 67 के तहत किए गए अपराध के संबंध में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया बन रहे हैं क्योंकि विशेषतौर पर व्हाट्सएप पर शिकायतकर्ता की नग्न तस्वीरें डालने का आरोप लगाया गया हैं। ऐसे में,केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता शिकायतकर्ता का पति है, प्राथमिकी को रद्द करने के लिए एक वैध आधार का गठन नहीं करता है।'' मामला न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता ने एक याचिका दायर कर आईपीसी की धारा 270, 313, 323, 376 डी, 34 और आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग ...

किसी मामले में जब कैदी कस्टडी पैरोल प्राप्त कर लेता है तो उसे सभी संबंधित अदालतों से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है: दिल्ली हाईकोर्ट

Image
किसी मामले में जब कैदी कस्टडी पैरोल प्राप्त कर लेता है तो उसे सभी संबंधित अदालतों से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है: दिल्ली हाईकोर्ट  कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता वर्तमान में कई अपराधों के लिए न्यायिक हिरासत में है, जिनमें से कुछ में वह एक दोषी के रूप में सजा काट रहा है, जबकि अन्य मामलों में, वह अभी भी अंडरट्रायल है। तो, यह सवाल उठता है कि क्या याचिकाकर्ता के लिए यह आवश्यक है कि वह संबंधित ट्रायल कोर्ट से प्रत्येक मामले में कस्टडी पैरोल प्राप्त करे, इससे पहले कि वह किसी मामले में कस्टडी पैरोल का लाभ उठा सके? सवाल का नकारात्मक जवाब देते हुए, कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा स्वयं के प्रस्ताव बनाम राज्य, 20.01.2020 (Crl.Ref. 5/2019), के मामले में दिए एक फैसले का उल्लेख किया, जहां आयोजित किया गया था, "चूंकि कस्टडी पैरोल सीमित अवधि के लिए है, इसलिए यह आवश्यक नहीं है कि अभियुक्त को प्रत्येक संबंधित ट्रायल कोर्ट से कस्टडी पैरोल प्राप्त करना होगा और अंडर ट्रायल को कस्टडी पैरोल पर भेजने से पहले अन्य अदालतों की अनुमति आवश्यक नहीं है।  खंडपीठ ने खंडपीठ के फैसले...

बेटी को बेटे के बराबर पिता की संपत्ति में हक है

Image
 बेटी को बेटे के बराबर पिता की संपत्ति में हक है Advocates  सुप्रीम कोर्ट ने अभी जो फैसला दिया है बेटी के पक्ष में ,उसमे बेटी को बेटे के बराबर पिता की संपत्ति में हक है .आइये इसे एक उदाहरण से समझते है ,जैसे मोहन के दो बेटे और एक बेटी तथा एक पत्नी है और मोहन के पास चालीस बिगहा जमीन है जो मोहन को उसके पिता से मिली थी ,अब मोहन मर जाता है 2010 में .अर्थात 09/09/2005 के बाद . अब इसमें बटवारा करना है तो देखिये और समझिये की बटवारा अब कैसे होगा . सबसे पहले मोहन को काल्पनिक तौर पर जिन्दा मान लिया जायेगा और चालीस  बीघा जमीन में चार हिस्सा लगेगा जिसमे दोनों बेटे ,मोहन की पत्नी और खुद मोहन का हिस्सा जो की मर चूका है ,इसे नोशनल बटवारा कहेगे और अब हर एक के हिस्से में आएगा दस बिगहा .अर्थात दस बीघा मोहन को जो मर चूका है ,दस दस बिगहा दोनों बेटो को और दस बिगहा मोहन की पत्नी को .अब बेटी का हिस्सा कहा है तो वो अब आगे मिलेगा अर्थात जो मोहन को दस बीघा हिस्सा मिला है उसमे फिर से बटवारा होगा क्युकी मोहन तो मर चूका है .अब दस बीघे का जो मोहन का हिस्सा है उसका बटवारा इस प्रकार होगा .......